कॉलेज का पहेला दिन । Story Number 2nd
जय श्री राम🙏
तो काहनी वही से सुरु करते हैं । मामा और भईया वापस जा चुके हैं। अब मैं जयपुर मैं अकेला हु जैसा मैं सोचा करता था कि अकेला रहूंगा वैसा अब हो चुका। मामा के जाने के बाद मैंने रूम को साफ किया और अपना सामान सब बाहर निकाल कर रखा। थोड़ा उत्साहित तो मैं अंदर से था क्योंकि कल से मुझे कॉलेज जो जाना था। शाम हुई भूख तो लगी थी पर मैं पहले चाय पीने गया । चाय पीने बाद मैं अपने रूम के पास आया । जो रूम के मालिक थे उनका नीचे मैं दुकान था जहाँ वो सारे जरूरी सामान जो एक विद्यार्थी को चाहिए वो रखते थे। मैं वहाँ जाकर उनसे बात करता हु की कोई टिफ़िन वाले से मेरे लिए वो बात कर ले। उन्होंने बोला यहाँ पहले बहुत सारे टिफ़िन वाले आया करते थे पर कोरोना के करण अब बहुत कम होगये है मैं आपके लिये बात कर लूंगा आप तब तक सामने जाकर खा लो। रूम के सामने ही Chief Style कैफ़े था । मैं वहाँ जाकर पराठा खाके आगया। घर पे सबसे बात करके सोने के प्रयास मैं लग गया पर नींद नहीं आई। कुछ देर प्रयास करने बाद मैं फिर अपना लैपटॉप निकल कर अपने वेबसाइट पे काम करने लगा ( मैं 2020 से ब्लॉगिंग करता था) । वेबसाइट पे काम करतेकरते हल्की नींद सी आने लगी । फिर मैंने लाइट और लैपटॉप बन्द करके सोने का प्रयास किया सुबह 6 बजे मेरा नींद टूट गया । कॉलेज 9 बजे तक पहुँचना था और रूम पर से कॉलेज जाने मैं 15 मिनट मुझे लगता। मैं बिछावन पर लेटे-लेटे फ़ोन चलाने लगा । 7 बजे मैं फर्श होने गया और 8 बजे तक मैं त्यार होके रूम से निकल गया। चाय वाले दुकान को यहाँ थड़ी बोला जाता वहाँ जाकर मैंने चाय पिया और कॉलेज के तरफ निकल गया । बच्चे कम थे मैं तिसरी बेंच पर बैठ गया। सब आपस मैं बात कर रहे थें वो सब अपने भासा का प्रयोग कर रहे थे मुझे समझ नहीं आरहा था। मैंने एक दो से बात करने की कोशिस की फिर बात होना सुरु हुआ । प्रोफेसर सबसे इंट्रो ले रहे थे और मैं भी ध्यान से देख रहा था कि कोई वहाँ जाए और बोले कि मैं बिहार से हु। 12 बज गये लंच होगया । कैन्टीन के तरफ सब गए मैं भी गया । वहाँ कुछ अच्छा मुझे दिखा नहीं और भूख मुझे लगी हुई थी । मैं वापस क्लास मैं आकर बैठ गया। मैंने देखा सब अपना बैग लेके जा रहे तब मैंने एक से पूछा तो पता चला कि सब लैब मैं जा रहें । मैं भी सबके पीछे-पीछे लैब मैं चला गया। लैब मैं क्या होगा इसके लिए मैं उतसाहित था पर वहाँ तीन घंटे काटने के अटेंडेंस मिल रहे थे। अपने साथियों से बातचीत की पर कहीं भी अपनापन सा नहीं लगा। 3 जैसे ही बजा प्रोफेसर आये और बोले जो जो बैठा है वो सब अपना अपना नाम लिख के एक पन्ने पे दे दो। 3:30 होते ही सारे लड़के लैब से निकल के घर की ओर निकल पड़े। मैं पूरे रास्ते ये सोच रहा था कि मैं कैसे रहूंगा कैसे क्या करूँगा क्या खाऊंगा। बहुत जोर से भूख लगा था मैं बैग के साथ ही रूम के नीचे वाले कैफ़े मैं जाकर मैग्गी खाके दुकान वाले से फिर बात किया कि भइया आप रोटी सब्जी नहीं खिला सकते? उन्होंने कहाँ की अभी स्टाफ नहीं वो आएगा तो देखता हूं। फिर मैं अपने रूम मैं आगया। ठंडी का मौसम आगया था मुझे कम्बल लेना था और भी कुछ कुछ लेना था। मैं ये सब सोच रहा था फिर घर पे पापा से बात करने का समय होगया।
हन तो कुछ इस तरह बिता था मेरा कॉलेज का पहला दिन।
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